Thursday, January 24, 2013

गुल -गोस्त

  1.                     इक था चिंटू इक थी गुडिया दोनों बन गए दोस्त
                        बीच सडक पर दौड़ लगाते बन बैठे गुल गोस्त 
      
    हबडम- गबडम, हल्लम गुल्ल्म  शैतानी के तीर चलाते
    खुल्लम खुल्लम , भूल भडडक्कम,घूम घूम कर चने चबाते
    माँ की झिडकी , दादी की घुड़की चिकुटी  खा कर चीखा  बंटी
    खेल खिलौने तोड़ फोड़ कर , बजा देते  खतरे की घंटी
    भूल भुलैया गाँव  चोपया फिरते चारो ओर  

    इक था चिंटू इक थी गुडिया दोनों बन गए दोस्त
    बीच सडक पर दौड़ लगाते बन बैठे गुल गोस्त

    कान पिल्ले का जाकर  खींचा, उठा टांग पर ऊचा नीचा
    कुतिया ने जबड़े को भींचा , नाप लिया फिर  आगा पीछा
    हईया हईया ता- ता थईया भागे देखो चिंटू -गुड़िया
    नदी मुहाने ताने बाने बन बैठे आफत की पुड़िया
          चैन मिले ना बाग़ बगीचे, भागे काका सुनकर शोर

    इक था चिंटू इक थी गुडिया दोनों बन गए दोस्त
    बीच सडक पर दौड़ लगाते बन बैठे गुल गोस्त



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4 comments:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 30/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है. धन्यवाद!
    एवं वर्ड व्हेरिफिकेशन हटाइये .

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  2. :-)

    बहुत बढ़िया...
    अनु

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  3. वाह !!! बहुत बढ़िया...प्रवीणा

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  4. तुम क्या आयीं मिष्ट........माँ ने कमाल कर दिया .........:)......

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